संघर्ष नर्मदा का/Sangharsh Narmada ka नर्मदा बचाओ आंदोलन का मौखिक इतिहास बजरिये आदिवासी नेता केशवभाऊ वसावे और केवलसिंग वसावे/ Narmada bachao andolan ka maukhik itihas
Material type: TextPublication details: New Delhi Rajkamal 2023Edition: 1st edDescription: 272pSubject(s): Social history | Social conflict | Social struggleDDC classification: 335.0093 Summary: ‘संघर्ष नर्मदा का’ नर्मदा बचाओ आन्दोलन में नर्मदा घाटी के लोगों, ख़ासकर आदिवासी समुदाय के योगदान, संघर्ष और बलिदानों की कहानी को उनके ही नज़रिये से सामने लाती है। सरदार सरोवर बाँध से प्रभावित आदिवासियों के जीवन, विस्थापन और पुनर्स्थापन की पीड़ाजनक प्रक्रिया के ब्योरे इस किताब में दर्ज हैं जो प्रकृति-अनुकूल जीवनशैली और विनाशकारी विकास-प्रक्रिया के द्वन्द्व के हवाले से, मानव समाज की भावी चुनौतियों और समाधान की ओर संकेत करते हैं। वाचिक इतिहास की अहमियत को रेखांकित करती हुई यह किताब बतलाती है कि स्मृति को सुनना एक राजनीतिक कर्म भी हो सकता है और परिवर्तनकारी भी। कार्यकर्ताओं, पयार्वरण-अध्येताओं, नृतत्त्व में रुचि रखनेवालों तथा मानवाधिकारों की पैरवी करनेवाले लोगों के लिए यह किताब एक ज़रूरी पाठ है।Item type | Current library | Call number | Materials specified | Status | Date due | Barcode |
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Books Hindi | YUVA Library | 335.0093/OZA(H) (Browse shelf (Opens below)) | Available | BK08202 | ||
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प्रस्तावना
आन्दोलन की आवाजें
आभार
भूमिका
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ता से लेकर नर्मदा संघर्ष के मौखिक इतिहासकार और इस पुस्तक तक मेरी यात्रा
नक्शा
घटनाक्रम
केशवभाऊ वसावे (नर्मदा बचाओ आन्दोलन के मुख्य कार्यकर्ता और आधार स्तम्भ) से 2007 में साक्षात्कार
केशवभाऊ वसावे का 2012 में साक्षात्कार
केवलसिंग वसावे (नर्मदा बचाओ आन्दोलन के हरफनमौला आदिवासी कार्यकर्ता) से 2007 में साक्षात्कार
केवलसिंग वसावे का 2012 में साक्षात्कार
सन्दर्भ
परिचय : अनुवादक, सम्पादक
‘संघर्ष नर्मदा का’ नर्मदा बचाओ आन्दोलन में नर्मदा घाटी के लोगों, ख़ासकर आदिवासी समुदाय के योगदान, संघर्ष और बलिदानों की कहानी को उनके ही नज़रिये से सामने लाती है। सरदार सरोवर बाँध से प्रभावित आदिवासियों के जीवन, विस्थापन और पुनर्स्थापन की पीड़ाजनक प्रक्रिया के ब्योरे इस किताब में दर्ज हैं जो प्रकृति-अनुकूल जीवनशैली और विनाशकारी विकास-प्रक्रिया के द्वन्द्व के हवाले से, मानव समाज की भावी चुनौतियों और समाधान की ओर संकेत करते हैं। वाचिक इतिहास की अहमियत को रेखांकित करती हुई यह किताब बतलाती है कि स्मृति को सुनना एक राजनीतिक कर्म भी हो सकता है और परिवर्तनकारी भी। कार्यकर्ताओं, पयार्वरण-अध्येताओं, नृतत्त्व में रुचि रखनेवालों तथा मानवाधिकारों की पैरवी करनेवाले लोगों के लिए यह किताब एक ज़रूरी पाठ है।
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